Aristocratic behaviour of Rajput elites: A Roadblock to Intellectual Mobilisation & Rajput Renaissance

Dalpat Singh Rathore :writing_hand:

राजपूत सामंतों के परिवारों को ,जिनके चलते आज पूरा राजपूत समुदाय कटघरे में खड़ा है , अन्य राजपूतों से कोई मतलब नहीं रह गया है ,क्योंकि वे अपने मिट चुके अस्तित्व को कायम रखने के मिथ्या भ्रम में जी रहे हैं । जमींदारी ख़त्म होने के साथ ही सारे जमींदार सामान्य जनता की श्रेणी में आ गए हैं ,पर वे इसे समझने के लिए तैयार नहीं हैं ।वे आज भी सामान्य लोगों से बात करना ,मिलना-जुलना पसन्द नहीं करते हैं और चापलूसों से घिरे रहते हैं ।उनकी औकात आज दान देने की नहीं रह गयी है ,लेकिन वे प्रतिष्ठा के नाम पर दान करते रहते हैं ।दान अपनी कमाई के धन का एकांश किया जाता है ।जमींदारों के वंशजों की अपनी कमाई कुछ नहीं है ,किराया या बिक्री को छोड़कर ।प्रदर्शन करना चाहते हैं , ।क्या शिक्षित -प्रशिक्षित हुए वगैर इसतरह का निवेश और संचालन सम्भव है?

इन परिवारों को सिंधिया परिवार से सीख लेनी चाहिए ।उन्हें आमलोगों की तरह बोलना और चलना सीखना चाहिए और अपने धन को वर्त्तमान अर्थतंत्र के अनुकूल ढालना सीखना चाहिए ।किसी ने कह दिया कि एक फैक्ट्री खोल दीजिये और आपने खोल दिया ।अरे ,पहले उसके pros and cons का चापलूसों की सलाह की बजाय self study कर मूल्यांकन कीजिये । यह सच है कि अभी आपके धन की स्थिति व्यापार में सामान्य मारवाड़ियों से भी टक्कर लेने की नहीं है l

जिन राजमहलों को इन परिवारों द्वारा गर्व के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है ,उन्हें होटल बनाकर कमाई करते तो बेहतर होता ,क्योंकि ये मकान अपनी उम्र पारकर ढह जायेंगे ।

पुराने अस्तित्व को भूलकर विद्यार्जन ,धनार्जन ,साख अर्जन आदि के क्षेत्र में नए जोश के साथ शामिल होकर अपने को फिर से सिद्ध करने का प्रयास करना चाहिए ।

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