Bulandshahr District (Uttar Pradesh)

बुलंदशहर जिले के क्षत्रिय वंशो का सर्वे

:writing_hand: by - Pushpendra Rana

बुलंदशहर जिले का नाम बुलंदशहर नगर के ऊपर पड़ा है जिसका प्राचीन नाम बरन है। लोकमान्यताओं के अनुसार बरन का नाम पांडव वंश की शाखा तोमर वंश के राजा अहीबरन के नाम पर पड़ा है। यह भी मान्यता है कि इससे पहले इसी तोमर राजपूत वंश के राजा परमाल ने यहां किले का निर्माण किया जिसका नाम बनछटी था। एक और मान्यता के अनुसार महाभारत में वर्णित वर्णावत का संबंध इसी बरन से है।

TOMAR

यह क्षेत्र महाभारत काल में हस्तिनापुर के चंद्रवंशी शासकों के अधीन था। बाद में इसी वंश की शाखा तोमर का दिल्ली में राज रहा। आज राजपूतो के तोमर वंश की दो खाप - Janghara और Indoria इस जिले में मिलती हैं जिनमे 24 गांव गुलावठी सिकंदराबाद मार्ग के क्षेत्र में है जिनमे बराल, छपरावत, पितोवास, बिसाइच प्रमुख हैं। मशहूर रिटायर्ड आईएएस सूर्य प्रताप सिंह पितोवास के ही हैं। इसके अलावा तोमरो के 5 गांव खुर्जा के पास हैं जिनमे धरपा चौहरपुर प्रमुख हैं।

DOD

इसके बाद पूर्व मध्यकाल में यहां डोड राजपूत राजाओं का शासन रहा। डोड राजपूतो की 16 पीढ़ियों ने यहाँ शासन किया जिनके अधीन वर्तमान के मेरठ से लेकर अलीगढ़ तक का क्षेत्र था। मेरठ, हापुड़, कोल आदि नगरो की स्थापना का श्रेय इस वंश के राजाओं को दिया जाता है।

मुहम्मद गोरी के हमले के दौरान बरन के ऊपरकोट दुर्ग में शाका हुआ जिसके बाद ना केवल इस वंश के शासन का खात्मा हुआ बल्कि शाका में अपार जनहानि होने के कारण इस वंश को बेहद नुकसान हुआ। यह वंश अब जिले के कुछ ही गांवों में मिलता है। हालांकि इस वंश के लोग अपने गौरवशाली इतिहास को भूलकर जगाओ के कहने पर खुद को जयपुर के कछवाहों से जोड़ने लगे हैं

BARGUJAR

डोरवंश के शासन के समय ही 1185 ई. में राजस्थान के राजौर से बडगूजर राजपूतो का एक दल राव प्रताप सिंह बडगूजर के नेतृत्व में आया जिन्हें डोर वंश के शासक की पुत्री से विवाह करने पर दहेज में 150 गांव की जागीर मिली जिसमे वर्तमान के डिबाई-पहासू-अतरौली क्षेत्र आते हैं। इनकी सर्वप्रथम राजधानी पहासू रही, उसके बाद चौंधेरा। जहांगीर के समय इन्हें वर्तमान अनूपशहर और *जहांगीराबाद का क्षेत्र भी जागीर में मिला। इस तरह धीरे धीरे इन्होंने बुलंदशहर और अलीगढ़ जिले के बड़े हिस्से को अपने अधीन कर लिया।

बुलंदशहर का संपूर्ण दक्षिण पूर्व क्षेत्र बडगूजरो के अधीन था जहाँ आज भी लगभग सौ के करीब गांवों में इनकी बड़ी आबादी है जो अनूपशहर, डिबाई, शिकारपुर, खुर्जा और स्याना विधानसभा में फैले हुए हैं। संख्या के मामले में जिले का सबसे बड़ा वंश है। बनैल, बेलोन, अनिवास, बरौली आदि इस वंश के बड़े गांव हैं। बनैल गांव से आरएसएस के पूर्व सरसंघचालक राजेन्द्र सिंह जी उर्फ रज्जू भैया थे, हालांकि वो तोमर वंश के थे। नगला दलपतपुर गांव के ही सूर्य प्रताप सिंह राघव हाल ही में आईएएस बने हैं।

Jadon / Yaduvansh

जादौन वंश यदुवंशी क्षत्रियों की मूल शाखा है। बयाना के यदुवंशी राज्य से इनका संबंध है। बुलंदशहर जिले में बड़गूजरो के बाद सबसे बड़ी आबादी संभवतया जादौन क्षत्रियों की हैं। खुर्जा-जेवर मार्ग पर लगभग दो दर्जन गांव जादोनो के हैं। इसके अलावा बुलंदशहर-खुर्जा मार्ग क्षेत्र के अलावा पूरे जिले में जादौन क्षत्रिय के गांव बिखरे हुए हैं। खुर्जा विधानसभा और बुलंदशहर विधानसभा में जादौन वंश अच्छा प्रभाव रखता है। सिकंदराबाद और जेवर विधानसभा में भी कुछ गांव हैं। यह वंश काफी ऊर्जावान और प्रगतिशील है। नौसाना के शीलेन्द्र कुमार सिंह आईएफएस थे और राजस्थान एवं अरुणाचल प्रदेश के गवर्नर रह चुके हैं। इनके पुत्र कनिष्क सिंह राहुल गांधी के सलाहकार हैं।

Solanki (Bhal)-

गुजरात के भाल क्षेत्र से 12वी सदी के आसपास सोलंकी राजपूतो का एक जत्था सारंगदेव सोलंकी के नेतृत्व में पृथ्वीराज चौहान की सेना के अंतर्गत यहां आया और वर्तमान के खुर्जा क्षेत्र में चौरासी गांव की जागीर स्थापित की जिसका मुख्यालय अरनिया था। गुजरात के भाल क्षेत्र से आने के कारण इनका नाम भाल पड़ा। सारंगदेव के पुत्र हमीर सिंह ने तराइन के युद्ध में भी भाग लिया था। इनसे सातवी पीढ़ी में तुगलकों के समय कीरत सिंह हुए जिनके एक पुत्र ने इस्लाम अपना लिया। यहां से जागीर दो हिस्सो में बंट गई। 42 गांव मुस्लिम शाखा को मिले जो अरनिया में रहे और हिन्दू शाखा को भी 42 गांव मिले जिन्होंने ककोड़ को अपना मुख्यालय बनाया। इनके 84 गांव सिकंदराबाद के ककोड़ से लेकर अरनिया तक बसे हुए हैं जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजपूतो की सबसे बड़ी खाप में से एक है। इसमे एक तिहाई गांव सिकंदराबाद विधानसभा और बाकी खुर्जा विधानसभा में आते हैं। देश की सबसे बड़ी हावड़ा रेल लाइन और पुराना दिल्ली-कलकत्ता जीटी रोड इस चौरासी के बीच में होकर गुजरती है। अभी फ्रेट कॉरिडोर और चोला इंडस्ट्रियल क्षेत्र बनने का लाभ इस खाप को मिलने वाला है। चोला, बीछट, पचगांव, झमका आदि इस खाप के अन्य गांव हैं।

Bargala & Jaiswar Bhati

सिकंदराबाद से ककोड़ कसबे के बीच में भाटी वंश की बरगला शाखा की 55 गांव की जागीर थी जिसमे से लगभग 32 गांव में इनकी अभी आबादी है। राव बर सिंह के नाम पर बरगला नाम पड़ा। 1857 की क्रांति में इस वंश के वैर, महेपा, भौरा आदि गांवो ने भाग लिया था। इस खाप के बीच से भी हावड़ा लाइन गुजरती है। एनसीआर के करीब होने के कारण इस खाप के गांव सक्षम हैं और फ्रेट कॉरिडोर और चोला इंडस्ट्रियल क्षेत्र के कारण और समृद्ध होने वाले हैं। इस खाप के सभी गांव सिकंदराबाद विधानसभा में लगते हैं।

बरगलाओ के पूर्व में रबूपुरा कस्बे के इर्द गिर्द और यमुना एक्सप्रेसवे के दोनो तरफ भाटी वंश की जैसवार शाखा के राजपूतो के 55 गांवों की जागीर थी जिनमे अब 20 के लगभग गांवों में इनकी आबादी है। एक्सप्रेसवे और अब एयरपोर्ट के लिए जमीन अधिग्रहण के कारण इन गांवों के राजपूतो को अत्यधिक फायदा हुआ है। ये सभी गांव जेवर विधानसभा में लगते हैं। जेवर विधायक ठाकुर धीरेन्द्र सिंह जी इन्ही में से हैं।

Chhonker Jadon (छोंकर)

जैसवारो से ही सटे हुए उनके दक्षिण में ,जेवर कसबे को घेरे हुए छोंकर राजपूतो के 32 गांव हैं जिनमें दयानतपुर प्रमुख है। यह यदुवंशियों की शाखा है और वर्तमान भरतपुर क्षेत्र से आकर 12वी सदी में राव देवपाल या अहरदेव के नेतृत्व में जेवर को जीतकर यहां जागीर बनाई गई। इस खाप को भी एक्सप्रेसवे और एयरपोर्ट के कारण काफी लाभ हुआ है। यह खाप भी पूरी जेवर विधानसभा में आती है।

Jadoliya Gaur

जडोलिया गौड़ वंश की शाखा मानी जाती है। वर्तमान के बुलंदशहर और स्याना के बीच में जडोलिया राजपूतो की 84 थी। जाडौल गांव में मुख्यालय होने के कारण इनका नाम जडोलिया पड़ा। ये बागी स्वभाव के हैं और लगातार मुगल साम्राज्य से बगावत करते रहे। जिस कारण औरंगजेब ने 1704 ई में सय्यदों को इन्हें दबाने के लिए भेजा। इनकी जागीर छीन कर सय्यदो ने औरंगाबाद कसबे की स्थापना की जिस कारण इस खाप को पिछड़ना पड़ा। आज भी कई दर्जन गांवो में इस वंश की आबादी है जिनमे जाडौल, लखावटी, ककरई, भावसी, चठेरा, मैथना, औलिना आदि हैं। इनमे कुछ गांव स्याना विधानसभा और बाकी अनूपशहर विधानसभा में आते हैं।

Bacchal Guhilot (sisodia)

स्याना तहसील के ऊंचागांव ब्लॉक क्षेत्र में गहलोत/सिसोदिया वंश की बाछल शाखा के राजपूतो के 12 गांव मिलते हैं। इनका निकास मेवाड़ से हाथरस और उसके बाद मथुरा होकर है। हाथरस में गहलोत राजपूतो की चौरासी है। वहां से एक शाखा मथुरा गई जहाँ पवित्र बछबन वन के नाम पर इसका नाम बाछल पड़ा। मथुरा में बाछल राजपूतो की बयालसी(42) है। वहां से एक शाखा बुलंदशहर में आई जहां मुगलकालीन थाना फरीदा परगने में 55 गांव की जागीर बनाई। अंग्रेजो के समय बगावत करने के कारण इन्हें जागीर से हाथ धोना पड़ा। आज 12 गांव में इनकी आबादी है जिनमे अमरथल(ऊंचागांव), नरसेना, सबदलपुर, पाली, रघुनाथपुर, शकरपुर, नगलिया, कमालपुर, प्याना आदि हैं। 2008 में ऑल इंडिया सातवी रैंक लाकर आईएएस बने राजेश राणा नरसेना के ही हैं।

Chauhan

चौहानो के प्रभुत्व काल में ही चौहान राजपूतो की एक 32 गांव की जागीर बुलंदशहर जिले के उत्तर में स्थापित हुई जिसका मुख्यालय सेंथा में था। इसे चौहानो का बत्तीसा कहा जाता है। तैमूर के दिल्ली आक्रमण के बाद तुगलकों में गृह युद्ध शुरू हो गया जिसमे नुसरत शाह दिल्ली पर कब्जा करके सुल्तान बन गया। उसके विरोधी निवर्तमान सुल्तान मुहम्मद शाह का सबसे ताकतवर सहयोगी मल्लू इकबाल खान बरन से दोआब पर शासन करता था। सुल्तान नुसरत शाह ने शहाब खान के नेतृत्व में बड़ी सेना बरन में मल्लू इकबाल खान को समाप्त करने के लिये भेजी। लेकिन इस सेना का रास्ते में बत्तीसा के चौहानो से सामना हो गया और चौहानो ने शहाब खान की गर्दन काट सुल्तान की पूरी सेना का सफाया कर दिया। इसकी सजा के तौर पर बत्तीसा की पूरी जागीर जब्त कर ली गई और पूरी खाप को बचाने के लिए इनके चौधरी को मुसलमान बनना पड़ा। अब इस खाप के कुछ ही गांव बचे हैं जिनमे अगौता, पवसरा, विसुन्धरा और भैंसरोली शामिल हैं। मशहूर क्रिकेटर चेतन चौहान का संबंध अगौता से ही है। कुछ साल पहले भैंसरोली के अंकित चौहान आईपीएस बने हैं।

इनके अलावा जिले में चौहानो के काफी गांव बिखरे हुए हैं। कुछ गांव अलीगढ़ जिले की सीमा के करीब हैं जो अलीगढ़ के चौहानो का विस्तार हैं। यहां से मशहूर गायिका सुनिधि चौहान आती हैं। स्याना तहसील में भी हापुड़ जिले से लगते हुए लगभग एक दर्जन गांव है चौहानो के हैं। जेवर क्षेत्र में कुछ निर्बान चौहान भी हैं।

Bais

बैस राजपूतो के 12 गांव डिबाई तहसील में गंगा जी के पास हैं जिनमे कर्णवास प्रमुख है। इसके अलावा बालका, भोपुर, गढ़िया भी बैसो के गांव हैं। खुर्जा के पास नगला मोइउद्दीनपुर भी बैसों का है। ये त्रिलोकचंदी बैस हैं और 12वी सदी में उन्नाव में बैसवाड़ा के डौंडियाखेड़ा से आए हैं।

Gaur (गौड़)

जडोलिया के अलावा गौड़ राजपूतो के 4-5 गांव और हैं जिनमे इस्माइला, भटोला और मालागढ़ शामिल हैं। इस्माइला वाले अपने को महपावत गौड़ बताते हैं।

Panwar

पवार राजपूतो के भी कई गांव जिले में है जिनमे काहरा प्रमुख है। इसके अलावा जहांगीराबाद के पास हिसावटी, रूरा और सलंगवा में भी पवार राजपूत हैं। कुछ गांव झाझर-जेवर में भी हैं गोबरा।

Kachwaha

कछवाहा राजपूत भी इस जिले में मिलते हैं। शिकारपुर का मंगलौर गांव में झोटियाना कछवाहो का है।

NOTE - सुविधा के लिए इस पोस्ट में गौतमबुद्धनगर जिले के जेवर क्षेत्र के क्षत्रियो को भी शामिल किया है।

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