Remembering Siddharth Gautam - The Kshatriya Prince of Sakya Clan (Gautam Dynasty of Rajputs)

#इक्ष्वाकुकुल में जन्में राजपुत्र सिद्दार्थ से कपिलवस्तु राजधानी त्यागकर #बुद्ध हुए #गौतम को वापस बुलाने के लिए उसी #गौतम_वंश के बेटे ( Vansh Lochan Singh Gautam ) द्वारा लिखी गई पाती।

हे बुद्ध फिर आओगे क्या?
बुद्ध सुना था तुम जब आए थे तो उस समय चारों ओर अंधविश्वास फैला हुआ था। लोग आस्था का तर्क से परीक्षण करना बंद कर चुके थे और कर्मकांडीय आस्था में आकंठ तक डूबे हुए थे। कहते हैं कि लोगों के दिमाग में सवाल बनने बंद हो गए थे और इस भूमि की बहुसंख्या ने मरने के बाद की आकर्षक पारलौकिक दुनिया को अपना लक्ष्य मान लिया था। कुछ तो यह मानने लगे थे कि हम मरेंगे ही नहीं और शाश्वत अमर होकर इस धरती पर लगातार बने रहेंगे। केवल हमारा शरीर आवागमन करेगा। चारों ओर आस्था का अंधकार फैला हुआ था। प्रश्न बंद, संदेह बंद, जिज्ञासा बंद, मानव की चिंतन की मौलिकता की धारा औपनिषदिक चिंतन के बाद ठहर सी गई थी। तभी पुनर्जागरण की लौ की तरह सिद्धार्थ तुमने पूरे मानव विचार के इतिहास को फिर पल्लवित किया था। अब तुम्हें क्या याद दिलाना यह सब तुम को तो पता ही है। देखो ना एक राजपुत्र होते हुए भी सिद्धार्थ तुमने मानव की चिरंतन जिज्ञासा और संदेह को पुनर्जीवित किया। तुम चाहते तो इस सवाल जवाब चिंतन संदेह से परे रहकर विलासिता वाला जीवन जीते।लेकिन तुम इतिहास में लुप्त होने के लिए थोड़े आए थे। तुम तो पूरे मानवता को सवाल पूछना सिखाने आए थे। यद्यपि तुम्हारा काम शासन करना था सवाल पूछना नहीं। फिर भी तुमने मानव इतिहास के मौलिक सवाल उठाए। वही सवाल जो आज हमारे पत्रकार नहीं
उठा पा रहे हैं जिनका तो काम और पेशा ही यही है सिद्धार्थ। तुम साहस की पराकाष्ठा तक गए।अपना घर- बार, पत्नी, पुत्र सब त्याग कर केवल पूंजी के तौर पर चार सवाल लेकर निकल पड़े थे। कितना रोमांचकारी था ना, यह सब सिद्धार्थ? तुम्हारा यह साहस बेकार कहां गया था सिद्धार्थ? साहस बेकार जाता भी कहां है! तुमने युगांतर कारी वे चार जवाब खोज लिए जिन्होंने वैदिक धर्म की चुलें हिला दी। कर्मकांडीय शाश्वतवादीआस्था का पूरा महल तुम्हारे बौद्धिक प्रहारो से ढह गया। तुम्हारे आत्म दीपो भव के उद्घोष ने आस्था के ऊपर फिर से एक बार तर्क की प्रतिष्ठा स्थापित की। तुमने मानव को वह आत्मविश्वास दिया जिससे वह उस ईश्वर को भी खारिज कर बैठा जिसे कल तक वह अपना निर्माता मानता था। तुमने उसे वह वैज्ञानिक मनोवृत्ति और आधुनिक सोच दी जिससे उसने मानव जीवन में मौजूद दुख के समाधान को सबसे प्रमुख प्रश्न माना। तुम बुद्ध बन गए। वह बुद्ध जो पूरे मानव इतिहास में बोध (ज्ञान) का क्रांतिकारी सिद्धांत लेकर आया। और यह ज्ञान किसी किताब में लिखा गया नहीं था। यह अनुभव से परखा गया, तर्क की कसौटी पर कसा गया ज्ञान था। तुमको जरूर पता रहा होगा बुद्ध कि तुम्हारी यह क्रांति स्थाई नहीं रहेगी और यह मूर्ख मानव कुछ दिन बाद सब कुछ भुला कर उसी आस्था की कंदरा में फिर लौटेगा। इसे तो गुफाओं में रहने की आदत है। अंधेरा इसको भाता है प्रकाश में इसकी आंखें चौधिया जाती है। तो तुमको यह भी तो सोचना चाहिए था कि इसको गुफा से निकालने के लिए, इसके भीतर फिर संदेह और जिज्ञासा भरने के लिए, तुम को बार बार आना पड़ेगा। तो फिर जब मानवीय जिज्ञासा और मानव मन के स्वाभाविक संदेह पर किताब हावी हुई, मानव समाज में अंधविश्वास बढ़ा,आस्था, तर्क पर हावी हुई तो तुम क्यों नहीं लौटे? तीसरी शताब्दी में क्यों नहीं आए जब हम पुराणों की गप की ओर लौट रहे थे?देखो बुद्ध तुमने यहां धोखा दिया। तुम तब भी नहीं लौटे जब हमारा समाज दसवीं शताब्दी के बाद लगातार फिर असमानता, अंधविश्वास के अंधकार की ओर भागा जा रहा था। बुद्ध, अब बहुत जल्दी लौटना पड़ेगा। अब निराश मत करना। मानव बहुत धूर्त और चालाक होता जा रहा है। अब देखो ना! कहां तुमने आस्था के खिलाफ विद्रोह किया था और इसने तो तुम्हारे नाम पर ही दुकानदारी शुरू कर दी है। पता है तुम्हें! तुम्हारे नाम का मंदिर बना दिया है बाकायदा तुम्हारे नाम पर पूजा पाठ करते हैं, तुम्हारी मूर्तियां बनाते हैं, तुम्हारे नाम पर कर्मकांड गढ़कर बुद्ध! घर-घर जाकर मंगल पाठ करके शादी ब्याह करवाते हैं। अब देखो तुम तो बोधवान हो तुम को तो सब पता होगा।यह तो तुम्हें भी उसी आस्था की सीमा में बांध रहे हैं जिसके खिलाफ विद्रोह करने के कारण तुम बुद्ध बने थे। अरे इसमें से तो कुछ तुमको भगवान बुद्ध कहने लगे है। फिर वह तुमने जो ईश्वर को खारिज किया था उसका क्या? समझाओ ना अपने अनुयायियों को। यह आत्म दीपो भव के सिद्धांत को कब का डकार चुके हैं और ज्ञान के दीपक की जगह आस्था की बाती सुलगा रहे है।
अब ज्यादा क्या लिखूं थोड़े को ही ज्यादा समझना।
बुद्धम शरणम गच्छामि
धम्मम शरणम गच्छामि
संघम शरणम गच्छामि

बुद्ध पूर्णिमा पर भारत के हमारे एक महान पुरखे महामानव गौतम बुद्ध को शत-शत प्रणाम और नमन।

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vansh dadabhai ke sadar chran sparsh,gautam rajputs siddharth gautam ke ansh nhi balki unke pita suddhodhana ke bhai amittodan ke hain jo kaipilvastu pe hamla hone se phle hi rajya chorkr chle gye the.unke putra ne rhind nadi ke kinare apna rajya basaya.rajguru shalnya ne raja suddhodhana ke yudh me mare jane ke baad amitoddan ko shkaya kshatriyo ka mukhiya bnaya or isi prakar kapilvastu ki gaddi argal rajao ko prapy hui…yah bht bda myth bn gya hain gautam rajputs mein ki ve siddharth gautam ke ansh hain…lekin aisa nhi