शिवाजी द्वारा मिर्जा जयसिंह को लिखे गए खत का सच।

हम सभी ने सुना है, माना है कि महाराजा जय सिंह का शिवाजी के विरुद्ध अभियान जब शुरू हुआ था तब शिवाजी ने उन्हें एक पत्र लिखा था। कुछ समय पूर्व तक मैं भी यही सोचता था। किन्तु समीक्षा करने बैठा तो तथ्यों की पटरी कहीं और ही जा रही थी।


सामान्य रूप से यह पत्र कुछ इस तरह प्रत्यारोपित किया जाता है।

परंतु तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रथम तो इस पत्र की सबसे पुरानी उपलब्ध या मूल प्रति मिलती है 1922 ईस्वी की, जिसकी पुष्टि स्वयं माननीय सरदेसाई जी करते हैं| इस प्रति के आधार का केवल उल्लेख मात्र मिलता है जो कुछ दशक पीछे 1892 ईस्वी यानि 19वीं सदी के अंत तक जाता है।

दूसरी बात - शिवाजी और जय सिंह जी 17वीं सदी के व्यक्तित्व हैं। 19वीं सदी से पहले इस पत्र का अस्तित्व होने के कोई साक्ष्य नहीं मिलते।

तीसरा - पत्र में जो बातें लिखी गयी हैं उनमें भी कई का तत्कालीन इतिहास में किसी पक्ष द्वारा कोई वर्णन नहीं है।
समकालीन ग्रंथों में जिस प्रकार का व्यवहार और जैसी भाषा का प्रयोग शिवाजी द्वारा महाराजा जय सिंह के साथ किया सिद्ध होता है। वो इस पत्र के बिलकुल उलट है|

चौथा - शिवाजी, मुग़लों और राजपूतों तीनों पर विस्तार से अध्ययन करने वाले विख्यात इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार ने इस पत्र को सर्वथा जाली यानि बाद में लिखा बताया है और ये अकेले जदुनाथ सरकार का निष्कर्ष नहीं था।


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More than historical facts, the letter relates to the polarizing perceptions and social tidings floating in the era after Aurangzeb.
(ऐतिहासिक तथ्यों से अधिक, यह पत्र औरंगजेब के बाद के युग में चल रहे ध्रुवीकरण की धारणाओं और सामाजिक ख़बरों से संबंधित है।)

जब तक हम सदियों पीछे के इतिहास को वर्तमान के चश्मे से देख कर उसका आवश्यकता से अधिक सरलीकरण और ध्रुवीकरण करते रहेंगे। हम गच्चा कहते रहेंगे। किसी भी काल का इतिहास उतना ही जटिल रहा है जितना कि उस समय का मानव जीवन। जो कभी भी केवल हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण तक सिमटा नहीं रहा है।

Twitter @virendrarathore द्वारा लिखा गया thread.

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